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कविता

कितना बचोगे तुम ?

विशाल श्रीवास्तव


तुम चाहे कहीं छिप जाओ
हम तुम्हें ढूँढ़ ही लेंगे
हमारे बिना नहीं है संभव तुम्हारा जीवन
कितना बचोगे तुम ?
 
तुम टीवी से बचोगे तो अखबार है
नहीं तो इंटरनेट एफएम रेडियो है
या फिर हम तुम्हारे मोबाइल पर 
फ्लैश एसएमएस की तरह चमकेंगे
बजेंगे द्विअर्थी गानों वाली रिंगटोन में
हम तुम्हें बिल्कुल आजिज कर देंगे
 
तुम मैक डी और केएफसी से बचोगे
तो हम आलू और लौकी की ब्रांडिंग कर देंगे
तुम्हारे जीवन का हर स्वाद हम अपने बिना 
बना देंगे असंभव 
पानी के बारे में सोचकर मत मुस्कुराओ
एक बार दिल्ली विल्ली आकर देखो
खरीदो एक रुपये वाला पाउच भरा हुआ
हमारी महिमा से अधिक और पानी से कम
 
तुम अंग्रेजी दवा से बचोगे तो 
हम आयुर्वेद में घुस जाएँगे
तुम क्रिकेट से बचोगे
तो हम साहित्य को स्पांसर कर देंगे
प्रेम व्रेम को हमने बहुत पहले खरीद लिया है
 
जल्दी से बता दो अपनी कीमत और बिक जाओ
नहीं तो तुम्हें पता है न हम कहाँ से आए हैं
हम तुम्हारे घर में घुसकर तुम्हें एक्जक्यूट कर देंगे
दुनिया में शांति बनाये रखने के लिए
ऐसा करना बेहद जरूरी है

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